Ashish0051को योगदानहरू

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२६ जुन २०२३

  • ११:४१११:४१, २६ जुन २०२३ अन्तर इतिहास +१,८९३ रघुवंश→‎रघुवंशको कथा: वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये । जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरः ॥ १.१ ॥ - रघुवंश (कालिदास) तात्पर्यम्- मैं वाणी और अर्थ की सिद्धि के निमित्त वाणी और अर्थ के समान मिले हुए जगत् के माता पिता पार्वती शिव को प्रणाम करता हूँ ॥ १.१ ॥ अर्थात् - वाणी और अर्थ जैसे पृथक् रूप होते हुए भी एक ही हैं उसी प्रकार पार्वती और शिव कथन मात्र से भिन्न-भिन्न होते हुए भी वस्तुतः एक ही हैं। वाणी और अर्थ सदैव एक दूसरे से सम्पृक्त रहते हैं। वाणी और अर्थ के समान शिव और पार्वती भी अभिन्न... चिनोहरू: मोबाइल सम्पादन मोबाइल वेब सम्पादन