"चन्द" का संशोधनहरू बिचको अन्तर

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*#क) चम्फावतका चन्द राजाको वंशज ( कश्यप गोत्र, सोमवंश (चन्द्रवंश) कुमाऊ चन्द राज्यकालका चन्द बर्तमानमा सिंह रौतेला ,कुँवर थर लेख्ने हरु ।
*#ख ) बैतडा चन्द रजवार ( बैतडी बाट जागिरको लागि कुमाऊ गएका चन्द)को वंशज (गौतम गोत्रीय ,चन्द्रवंशी) बैताडा चन्द ।
*#ग) देउवा रजवार (डोटी बाट जागिरको लागि कुमाऊ गएका) को वंशज ( कश्यप गोत्रीय ,सूर्यवंशी ) वर्तमानमा चन्द लेख्छन ।
 
*क ) चम्फावतका चन्द राजाका वंशज बर्तमानमा सिंह ,रौतेला र कुँवर थर लेख्ने गर्दछन । पुराना ताम्रपत्रमा यिनले आफ्नो थर चंद/चन्द्र लेखेको भेटिन्छ । ताम्रपत्रमा सोम्वंश उद्भव भनेर लेखेको छ । यस वंशज को बिषयमा प्राचीन सोर (वर्तमान पिथौदागड ) को बिषयका इतिहास लेख्ने डा रामसिंह ले आफ्नो सोर (मध्य हिमालय ) का अतीत (प्रारम्भ से १८५७ ई तक) पुस्तकको पेज २३०मा बैताडा चन्द र कुमाऊ को चन्द राजवंश भिन्न हुन् कसैले एकै हुन् भन्दछ भने त्यो सरासर गलत हुन्छ भनेका छन् । उनी भन्दछन सोर के जीबी सलमोडा मे चन्दो के वंशधर रौतेला हि कहे जाते है ।<ref name="डा रामसिंह">डा रामसिंह सोर (मध्य हिमालय ) का अतीत (प्रारम्भ से १८५७ ई तक) पुस्तकको पेज २३०मा</ref> किन्तु कुँवर गुसाई शब्द भी अपने कुलके कनिस्ट सदश्य के लिए प्रयुक्त करते है भन्दछन । सोर को जीबी सलमोड़ा का रौतेला हरु कश्यप गोत्र र चन्द्रवंशी भएको सम्बन्धित स्थान बाट थाहा हुन्छ । यी संग सम्बन्धित ताम्रपत्र को प्रतिलिपि (उतार )
 
*#१) चम्फावतका चन्द राजाको सेलौनी, कुंवर धन्यचन्द्रको ताम्रपत्र
*स्रोतः===१) चम्फावतका चन्द राजाको सेलौनी, कुंवर धन्यचन्द्रको ताम्रपत्र<ref name="श्री गोविन्द बल्लभ जोश > श्री गोविन्द बल्लभ जोशी (अब स्वर्गीय) सेलोनी पिठौरागढ । डाँ.रामसिंह, सोर(मध्य हिमालय) का अतित पेज ३६८बाट उतार </ref>===
*ॐ ।। स्वस्ति ।। श्री शाके १३६७ समये जेष्ट वदि दिन ११ गते शुक्रवास
*रे आमावास्यां तिथौ सूर्यपव्र्वणि कुवर श्री धन्यचन्द्र पादाश्चि(रं)
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*रिठु भडारि खर्क को क्षिर बोहरा लीखितं जइदास ।। शुभमस्तु ।।
*श्री कर रुप कुमाइ रैसु लखु बिष्ट साक्षि
*स्रोतः श्री गोविन्द बल्लभ जोशी (अब स्वर्गीय) सेलोनी पिठौरागढ । डाँ.रामसिंह, सोर(मध्य हिमालय) का अतित पेज ३६८बाट उतार
कोटभ्रामरी भगवतीसँग सम्बन्धित केही अभिलेखहरु
 
 
*#===२) जगतचन्दका ताम्रपत्र शाके १६३४(वि.स.१७६९)===
*यह ताम्रपत्र कोट भ्रामरी (कोट की माई) मन्दिर के सम्बन्ध मे जारी किया गया है ....
*हिन्दी अनुवाद ः महाराजाधिराज श्री राजा जगतचंद देव जी ने दान संकल्पके साथ महामाई को कत्यूरके गर्खे(परगना) मे तीन आली रतोडो और तीन आली देउरडो की अर्थात कुल ६ *आली चढाई इससे प्रति दिन दो सेर चावलका भोग लगेगा और दो बार दिया जलेगा । देवीके मन्दिरमे पूजा अच्छी तरह होनी चाहिए । इन ६ आली से लगे गाड घट लेख इजर भी *दान में दिए । देवताके हिस्से मे चोरी नही करनी चाहिए । इस भूमिदानके साक्षी है ः महाराज कुमार श्री देवसींग गुसाई, श्री वल्लव पाण्डे पुरोहित लक्ष्मीपति पाण्डे गुरु पहाडी सींग *हरिमल गुसाई मनीकंठ अधिकारी मनींक विष्ट भवानन्द जोशी, गोपी साहु केशव रनजीत भण्डारी गिरिधर सेज्याली गोपालकोटको सिकदार सालीवान वेलाल ।
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*मानीक विष्ट
 
*#===३) देवीचन्द्र ताम्रपत्र शाके १६४८ (वि.स.१७८३)===
*श्री रामचन्द्रके चरणो में भक्ति रखने वाले सोमवंश मे उत्पन्न महाराजाधिराज राजेन्द्र श्री महाराजाधिराज श्री राजा देवी चन्द्र देव ने श्री देवी माहामाई के लिए कत्यूरमें पाँच आली गाँव *चढाये । हाट मे उपाध्याय वालाखेत और बोकसाड के परगने में कमलपति विष्ट वाला मौजा भूतौला चढाया । इन आली से सम्बन्धित धुरा, डाडा गाड घट लेक इजर आदि सभीदान हो *गये । इस भूमिसे अभितक राज्ये को नाठ नठाली गडेली पेटिली स्वर्ग से गिरी वस्तु पातालकी निधि घोडालो कुकुरालो बाजदार बजनीया आदि कर एवं दस्तुर मिलते थे वे सव माफ कर *दिए गये है और भूमि सम्बन्धी सभी विवाद निबटा दिए गये हैं ।
*प्रतिदिन भोग में पकने वाले चावल दाल नमक घी तेल आदि की मात्रा भी लिखदी गई है । मालके गाँव जो तेल मिले उससे सुवह साम के दीपक को व्यवस्था के अतिरिक्त चार्तुमास *मे अखण्ड दीपक भी जलाना है श्री खण्ड चन्दन गुगुल धुप केसर वस्त्र आदिकी व्यवस्था होनी हैं । इन सबके लिए भण्डारको सुव्यवस्थित रखना है ।
*इस भूमि दान के साक्षी है महाराजकुमार श्री राजसिह गुसाई, पुरोहित शिवराम पाण्डे गुरु जयानन्द पाण्डे तेजसीग कल्याणसीग सुरसींग गुसाई बख्शी मानिक विष्ट भवानन्द जोशी गिरधर *सेज्याली श्री गोपाल कोट रणचुलाका सिकदार अमरसीग गैडा लक्ष्मीकार उपाध्याय ने आपसमे पाला लगाकर देवी की पूजा करनी हैं । भोग पूजा की सामग्री मे जो दागावाजी करे उसे (दण्ड देना हैं उपाध्यायो को देवीके कपडो की व्यवस्था करनी है । यह ताम्रपत्र शाके १६४८ जेष्ठ माह लिखा गया है ।
 
 
==बैतडा चन्दहरूको वर्गिकरण==
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