"नागार्जुन (प्राचीन बौद्ध दार्शनिक)" का संशोधनहरू बिचको अन्तर

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'''नागार्जुन''' (बौद्धदर्शन) शून्यवादको प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मतको पुरस्कारक प्रख्यात [[बुद्ध धर्म|बौद्ध]] आचार्य थिए। युवान् च्वाङको यात्राविवरण अनुसार नागार्जुन महाकोशलको अन्तर्गत विदर्भ देश (आधुनिक बरार) मा जन्मेको थिए।
{{अनुवाद}}
== कृतिहरू ==
'''नागार्जुन''' (बौद्धदर्शन) शून्यवाद के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात [[बुद्ध धर्म|बौद्ध]] आचार्य थे। युवान् च्वाङू के यात्राविवरण से पता चलता है कि ये महाकोशल के अंतर्गत विदर्भ देश (आधुनिक बरार) में उत्पन्न हुए थे। आंध्रभृत्य कुल के किसी शालिवाहन नरेश के राज्यकाल में इनके आविर्भाव का संकेत चीनी ग्रंथों में उपलब्ध होता है। इस नरेश के व्यक्तित्व के विषय में विद्वानों में ऐकमत्य नहीं हैं। 401 ईसवी में कुमारजीव ने नागार्जुन की संस्कृत भाषा में रचित जीवनी का चीनी भाषा में अनुवाद किया। फलत: इनका आविर्भावकाल इससे पूर्ववर्ती होना सिद्ध होता है। उक्त शालिवाहन नरेश को विद्वानों का बहुमत राजा गौतमीपुत्र यज्ञश्री (166 ई. 196 ई.) से भिन्न नहीं मानता। नागार्जुन ने इस शासक के पास जो उपदेशमय पत्र लिखा था, वह तिब्बती तथा चीनी अनुवाद में आज भी उपलब्ध है। इस पत्र में नामत: निर्दिष्ट न होने पर भी राजा यज्ञश्री नागार्जुन को समसामयिक शासक माना जाता है। बौद्ध धर्म की शिक्षा से संवलित यह पत्र साहित्यिक दृष्टि से बड़ा ही रोचक, आकर्षक तथा मनोरम है। इस पत्र का नाम था - "आर्य नागार्जुन बोधिसत्व सुहृल्लेख"। नागार्जुन के नाम के आगे पीछे आर्य और बोधिसत्व की उपाधि बौद्ध जगत् में इनके आदर सत्कार तथा श्रद्धा विश्वास की पर्याप्त सूचिका है। इन्होंने दक्षिण के प्रख्यात तांत्रिक केंद्र श्रीपर्वत की गुहा में निवास कर कठिन तपस्या में अपना जीवन व्यतीत किया था।
# माध्यमिक कारिका
 
# प्रमाणविघटन अथवा प्रमाणविध्वंसन
== रचनाएँ ==
# उपायकौशल्यहृदय शास्त्र
'''माध्यमिक कारिका''' के अतिरिक्त उनकी निःसंदिग्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं - युक्तिशतिका, शून्यतासप्तति, प्रतीत्यसमुत्पादहृदय, महायानविंशिका, विग्रहव्यावर्तनी, प्रज्ञापारमिताशास्त्र की तथा दशभूमि विभाषाशास्त्र की टीकाएँ। [[तिब्बती भाषा]] में "प्रमाणविघटन" (जिसमें न्यायशास्त्र के षोडश पदार्थों का खंडन किया गया है) तथा [[चिनियाँ भाषा|चीनी भाषा]] में उपाय कौशल्यहृदय (जिसका अनुवादकाल 472 ई. तथा कार्यविषय शास्त्रार्थ है) नागार्जुन की ही रचनाएँ मानी जाती है।
# विग्रह व्यावर्तनी
 
# युक्तिषष्टिका
नागार्जुन की रचनाएँ अपनी शैली तथा युक्ति के लिए अत्यंत प्रख्यात हैं। इन रचनाओं में प्रसिद्धि पानेवाले ग्रंथ ये हैं -
# सुहृल्लेख
 
# चतुःस्तव
(1) '''प्रमाणविघटन''' अथवा '''प्रमाणविध्वंसन''', जिसमें गौतम के षोडश पदार्थों के रूप तथा लक्षण का खंडन किया गया है। संस्कृत मूल उपलब्ध नहीं है केवल तिब्बती में इसके मूल तथा टीका के अनुवाद प्राप्य है।
 
(2) '''उपायकौशल्यहृदय शास्त्र''', जिसमें प्रतिवादी के ऊपर विजय पाने के लिए जाति, निग्रह-स्थान आदि शास्त्रार्थ के न्याय परिचित उपायों का विशिष्ट वर्णन किया गया है।
 
(3) '''विग्रह व्यावर्तनी''', 72 कारिकाओं में निबद्ध यह ग्रंथ मूल संस्कृत तथा तिब्बती अनुवाद दोनों में उपलब्ध है। वण्र्य-विषय है गौतम सम्मत प्रमाण का खंडन तथा तदुपरांत स्वाभिमत शून्यवाद का। युक्तियों से मंडन। छोटा होने पर भी बौद्धन्याय की जानकारी के लिए यह महत्वपूर्ण रचना है।
 
(4) '''युक्तिषष्टिका''', जिसके कतिपय श्लोक बौद्ध ग्रंथों में प्रमाण की दृष्टि से उद्घृत किए गए हैं।
 
(5) '''सुहृल्लेख''', इसका ऊपर उल्लेख किया गया है। मूल संस्कृत के अभाव में इसके वण्र्य विषय की जानकारी हमें इसके तिब्बती अनुवाद से ही होती है। नागार्जुन ने इस पत्र के द्वारा अपने सुहृद् यज्ञश्री शातवाहन को परमार्थ तथा व्यवहार की शिक्षा दी है। बौद्ध साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनके द्वारा बौद्ध आचार्यों ने अपने किसी मान्य शिष्य को अथवा तत्वजिज्ञासु को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का उपदेश दिया।
 
(6) '''चतुःस्तव''', तथागत की प्रशस्त स्तुति में लिखे गए चार स्तोत्रों का संग्रह जिसमें निरुपम स्तव तथा परमार्थ स्तव मूल संस्कृत में उपलब्ध हैं, परंतु अन्य दो अचिन्त्यस्तव और लोकातीतस्तव - केवल [[तिब्बती भाषा|तिब्बती]] अनुवाद में प्राप्य है। इस ग्रंथ में नागार्जुन की सरस काव्यप्रतिभा का पूरा परिचय पाठक को मिल जाता है।
 
(7) नागार्जुन के कीर्तिमंदिर का स्तंभ स्थानीय महनीय दार्शनिक ग्रंथ है '''माध्यमिक कारिका'''। नागार्जुन के पांडित्य, व्यापक दार्शनिकता, उद्भट तार्किकता तथा नवीन कल्पना का भांडागार है यह उदात्त ग्रंथ जिसे आचार्य भव्य कृत प्रज्ञाप्रदीप - तथा आचार्य चंद्रकीर्ति रचित "प्रसन्नपदा" जैसी प्रौढ़ वृत्तियों के द्वारा अलंकृत होने का गौरव प्राप्त है। 27 प्रकरणों में विभक्त यह ग्रंथ कारिकाओं में ही निबद्ध है। यह प्रसन्नपदा के साथ मूल अनुवाद में [[सेन्ट पिटर्सवर्ग|लेनिनग्राद]] से नागराक्षरों में प्रकाशित भी हुआ है।
 
== नागार्जुन का शून्यवाद ==
नागार्जुन की दृष्टि में मूल तत्व शून्य के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। ध्यान देने की बात यह है कि यह शून्य कोई निषेधात्मक वस्तु नहीं है जिसका अपलाप किया जा सके। किसी भी पदार्थ का स्वरूपनिर्णय करने में चार ही कोटियों का प्रयोग संभाव्य है - अस्ति (विद्यमान है), नास्ति (विद्यमान नहीं है), तदुभयम् (एक साथ ही अस्ति नास्ति दोनों) तथा नोभयम् (अस्ति नास्ति दोनों कल्पनाओं का निषेध)। परमार्थ इन चारों कोटियों से मुक्त होता है और इसीलिए उसके अभिधान के लिए "शून्य" शब्द का प्रयोग हम करते हैं। नागार्जुन के शब्दों में-
: न सन् नासन् न सदसत् न चाप्यनुभयात्मकम्।
: चतुष्कोटिर्विनिर्मुक्त तेत्वं माध्यमिका विदु:॥
शून्यवाद की सिद्धि के लिए नागार्जुन ने विध्वंसात्मक तर्क का उपयोग किया है - वह तर्क, जिसके सहारे पदार्थ का विश्लेषण करते करते वह केवल शून्यरूप में टिक जाता है। इस तर्क के बल पर द्रव्य, गति जाति, काल, संसर्ग, आत्मा, आदि तत्वों का बड़ा ही गंभीर, मार्मिक तथा मौलिक विवेचन करने का श्रेय नागार्जुन को है। इस मत में सत्य दो प्रकार का होता है - (1) सांवृतिक सत्य तथा (2) पारमार्थिक सत्य जिनमें प्रथम अविद्या से उत्पन्न व्यावहारिक सत्ता का संकेत करता है; द्वितीय प्रज्ञा जनित सत्य का प्रतिपादक है। "संवृति" शब्द का अर्थ है अविद्या। अविद्याजनित होने से व्यावहारिक सत्य सांवृतिक सत्य के नाम से जाना जाता है। सत्य की यह द्विविध व्याख्या नागार्जुन की दृष्टि में शून्यवाद के द्वारा उद्भावित नूतन कल्पना नहीं है, प्रत्युत बुद्ध के द्वारा ही प्राचीन काल में संकेतित की गई है। बुद्ध के कतिपय उपदेश व्यावहारिक सत्य के आधार पर दिए गए हैं; अन्य उपदेश पारमार्थिक सत्य के ऊपर आलंबित हैं। अभीष्ट दोनों है बुद्ध को -
: द्वे सत्ये समुपाश्रित्य बुद्धानां धर्मदेशना।
: लोक संवृतिसत्यं च सत्यं च परमार्थित: ॥
नागार्जुन दार्शनिक होते हुए भी व्यवहार की उपेक्षा करनेवाले आचार्य नहीं थे। वे जानते हैं कि व्यवहार का बिना आश्रय लिए परमार्थ का उपदेश ही नहीं हो सकता और परमार्थ की प्राप्ति के अभाव में निर्वाण मिल नहीं सकता। साधारण मानवों की बुद्धि व्यवहार में इतनी आसक्त है कि उसे परमार्थपथ पर लाने के लिए व्यवहार का अपलाप नहीं किया जा सकता। फलत: व्यवहार की असत्यता परमार्थ शब्दों के द्वारा प्रतिपाद्य वस्तु नहीं है। इसीलिए उसे "अनक्षरतत्व" के अभिधान से जानते हैं। परमार्थतत्व बुद्धिव्यापार इतनी आसक्त है कि उसे परमार्थ पथ पर लाने के लिए व्यवहार का अपलाप नहीं किया जा सकता। फलत: व्यवहार की "असत्यता" दिखलाकर ही साधक को परमार्थ में प्रतिष्ठित करना पड़ता है। परमार्थ शब्दों के द्वारा प्रतिपाद्य वस्तु नहीं है। इसीलिए उसे अनक्षर तत्व के अभिधान से जानते हैं।
 
परमार्थतत्व बुद्धिव्यापार से अगोचर, अविषय (ज्ञान की कल्पना से बाहर), सर्वप्रपंचनिर्मुक्त तथा कल्पनाविरहित है, परंतु उसके ऊपर जागतिक पदार्थों का समारोप करने से ही उसका ज्ञान हमें हो सकता है। यह तत्व वेदांतियों के अध्यारोप तथा अपवादविधि से निमांत सादृश्य रखता है।
 
== नागार्जुन कानागार्जुनको शून्यवाद ==
== अन्य नागार्जुन ==
== सन्दर्भ  सामग्रीहरू==
'''आर्य नागार्जुन''' के नाम से वैद्यक, रसायन विद्या तथा तंत्र के ग्रंथ भी उपलब्ध होते हैं। कतिपय विद्वान् दार्शनिक नागार्जुन को तांत्रिक नागार्जुन से नितांत अभिन्न मानते हैं, परंतु विद्वानों का बहुमत इन दोनों की भिन्नता मानने के ही पक्ष में है। इसी से आर्य नागार्जुन से भिन्नता दिखलाने के हेतु तांत्रिक नागार्जुन "सिद्धनागार्जुन" के नाम से अभिहित किए जाते हैं। दोनों के समय में भी पर्याप्त अंतर है। आर्य नागार्जुन का आविर्भाव द्वितीय शती के उत्तरार्ध में हुआ था, जब कि सिद्ध नागार्जुन का समय सप्तम शती के आस पास स्वीकार किया जाता हैं। नागार्जुन का [[तिब्बती भाषा|तिब्बती]] नाम है - क्लुस-ग्रुव और तारानाथ के प्रामाण्य पर ये 300 ई. के आसपास राज्य करनेवाले राजा नेमिचंद्र के समकालीन माने जाते हैं परंतु यह मत प्रामाणिक नहीं है। प्रकृत आख्यायिका "लीलावती" के अनुसार नागार्जुन पोट्टिस तथा कुमारिल के साथ शातवाहन के दरबार में रहते थे।
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==यो पनि हेर्नुहोस्==
आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन सिद्धों की परंपरा में हुए हैं। इनका समय आठवीं या नवीं शती है। यही समय [[आयुर्वेद]] में रसचिकित्सा, धातुवाद का है। प्रबंधचिंतामणि से पता चलता है कि नागार्जुन पादलिप्त सूरि के शिष्य थे। इसी पुस्तक के अनुसार ये पारद से स्वर्ण वनाने में सफल हुए थे (रसशास्त्र पृ. 52-53)। नागार्जुन के नाम से कई योग आयुर्वेद में प्रचलित हैं।
 
== सन्दर्भ ==
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== इन्हें भी देखिये ==
* नागार्जुन (रसायनशास्त्री)
==बाह्य लिङ्कहरू==
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://books.google.co.in/books?id=V7sJvSoSsTkC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false पाँच बौद्ध दार्शनिक] (गूगल पुस्तक ; लेखक - राहुल सांकृत्यायन)
* [http://indica-et-buddhica.org/sections/repositorium-preview/materials/nagarjuna/bibliography Nagarjuna: a bibliography]