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[[चित्र:External female genitalia.jpg|thumb|योनि को भाग <br>
'''1''' - क्लिटोरिस हुड, '''2''' - भगशेफ (क्लिटोरिस), <br>'''3''' - मूत्रद्वार को छिद्र, '''4''' - योनिमार्ग, <br> '''5''' - वृहत भगोष्ठ, '''6''' - लघु भगोष्ठ, '''7''' - गुद्दार]]
योनि को बाहिर देखिने भागलाई '''[[भगयोनी]]''' भन्ने गरिन्छ । यो दुईवटा छाप्राको बिचको योनिको प्रबेश द्वार हो। बयस्क महिलाहरुमा यो चारै तिरबाट रौ ले घेरिएको हुन्छ। यो छालाको धेरै तह मिलेर बनेको हुन्छ, जसले भित्रि अंगहरुलाई सुरक्षा प्रदान गर्छ । यह कई उपांगोंयोनिमार्ग [[पाठेघर]]को समाविष्ट किय हुए है जैसे भगशिशिनका, मूत्रमार्ग का छिद्र, योनि की झिल्ली (हाइमेन), लघु ग्रंथियां, वृहत भगोष्ठ, लघुभगोष्ठ इत्यादि। यह गर्भाशयमुखदेखि से योनियोनिको प्रघाणबाहिरि तकभाग फैली हुईसम्म लगभग 8 सेदेखि 10१० सेमीमीटरसेमी लम्बीलामो नली होतीहो है जोजुन मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग केको पीछेपछाडि तथा मलाशय एवंएंवम् गुदामार्गगुद्दार केको सामनेअगाडि स्थितरहेको होती है।हुन्छ। एक वयस्क स्त्री मेंमा योनि[[योनी]]को कीपछिल्लो पिछलीभाग भित्तिउसको उसकीअगिल्लो अगलीभाग भित्तिभन्दा सेधेरै ज्यादालामो लम्बीहुन्छ होती है और योनि गर्भाशय के[[पाठेघर]]को साथ समकोण बनाती है।बनाउछ।
 
योनीको भित्ताहरु मुख्यतः चिल्ला मांशपेशी र फाइब्रोइलास्टिक [[यौन उत्पेरक]]ले बनेको हुन्छ। सामान्य अवस्था मा योनीको भित्ताहरु आपसमा चप्किएर रहने गर्छन् [[संभोग]] क्रियाको बेलामा लिंग प्रबेश हुदा यिनिहरु अलगिन्छन् । गर्भाशय ग्रीवा (cervix) के योनि में उभर आने से इसके आगे, पीछे तथा पार्श्वों में चार खाली स्थान बनते हैं जिन्हें फॉर्निसेस (fornices) कहा जाता है।
 
योनि की भित्ति दो परतों से मिलकर बनी होती है-
 
*(1) '''पेशीय परत''' (Muscular layer)- इस परत में चिकनी पेशी के लम्बवत् एवं गोलाकार तंतु तथा तंतुमय लचीले संयोजी ऊतक रहते हैं। इसी कारण से योनि में बहुत ज्यादा फैलने और सिकुड़ने का गुण पैदा होता है।
 
*(2) '''श्लेष्मिक परत''' (Mucous layer)- यह श्लेष्मिक कला की आतंरिक परत होती है जो पेशीय परत को आस्तरित करती है। इस परत में बहुत सी झुर्रियां (rugae) रहती है। यह परत स्तरित शल्की उपकला (stratified squamous epithelium) अर्थात् परिवर्तित त्वचा, (इसमें बाल नहीं होते) (nonkeratinizing), से आच्छादित (ढकी) रहती है। यौवनारम्भ के बाद यह परत मोटी हो जाती है और ग्लाइकोजन से परिपूरित रहती है। इसमें ग्रंथियां नहीं होती है।
 
योनि को चिकना बनाये रखने के लिए श्लेष्मा स्राव गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद ग्रंथियों से ही आता है। यह स्राव क्षारीय होता है लेकिन योनि में प्राकृत रूप से पाये जाने वाले बैक्टीरिया ([[डोडर्लिन बेसिलाइ]]) श्लेष्मिक परत में मौजूद ग्लाइकोजन को [[लैक्टिक एसिड]] में बदल देते हैं, जिससे योनि के स्राव की प्रतिक्रिया अम्लीय हो जाती है। इससे योनि में किसी भी तरह का संक्रमण होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
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