कुनै सम्पादन सारांश छैन
कुनै सम्पादन सारांश छैन
पङ्क्ति ८७:
 
सधैं रमाउनू जगत्<br />
रमेर नित्य आश दी॥</font></big> <small>--महाकवी लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा</small>