"अनन्त चतुर्दशी" का संशोधनहरू बिचको अन्तर

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भाद्र महिनाको शुक्ल पक्षको चतुर्दशीलाई अनन्त चतुर्दशी भनिन्छ। यस दिन भगवान् अनन्तको पूजा, आराधना र व्रत हुने गर्दछ। यस दिन अनन्तका रूपमा भगवान् हरिको पूजा गरिन्छ। रुवा, रेशमी धागो वा कुशले बनाएको चौधवटा गाँठो भएको अनन्तको निर्माण गरी पुरुषले दाहिने तथा नारियांनारीहरु बाँयेदेब्रे हाथहाथमा में अनन्त धारण करती हैंगर्दछ रूई या रेशमवा केरेशमका धागे कुंकमी रंगरंगमा में रंगे होतेहुन्छन् हैं और उनमेंउनमा चौदह गाँठेगाँठा होतीहुन्छन्। हैं।यिनैं इन्हींधागहरुबाट धागों से अनन्तअनन्तको का निर्माण होताहुन्छ। है। यहयो व्यक्तिगत पूजा है, इसकायसको कोईकुनै सामाजिक धार्मिक उत्सव नहीं होता।हुँदैन। अग्नि पुराण[1]मा मेंयसको इसका विवरण है।छ। चतुर्दशीचतुर्दशीलाई को दर्भ सेदर्भबाट बनी हरि कीहरिको प्रतिमा की, जो कलशकलशका केजलमा जल मेंराखेको रखी होती हैहुन्छ, पूजा होती है। व्रती कोहुन्छ। धानव्रतीलाई केधानका एक प्रस्थ (प्रसर) आटेआटेबाट से रोटियाँरोटीहरु (पूड़ी) बनानीबनाउनु होतीपर्छ हैं जिनकीजसको आधी वह ब्राह्मणब्राह्मणलाई कोदिन्छ दे देता है और शेष अर्धांश स्वयं प्रयोग मेंप्रयोगमा लाता है।ल्याउँछ।
 
इसयस दिन व्रती कोव्रतीलाई चाहिए कि प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों सेनित्यकर्महरुबाट निवृत्त होकरभएर कलश कीकलशको स्थापना करें। कलशगर्नुहोस्। परकलशमा अष्टदल कमल केकमलका समान बने बर्तनबर्तनमा में कुश सेकुशबाट निर्मित अनन्त की स्थापना कीअनन्तको जातीस्थापनाको है।जान्छ। इसकेयसका आगेअघि कुंकुम, केसर यावा हल्दी सेहल्दीबाट रंगकर बनाया हुआबनाएको कच्चे डोरेडोरेको का चौदह गांठोंगांठहरु वाला 'अनन्त' भी रखा जातापनि है।रखिन्छ।
भाद्र महिनाको शुक्ल पक्षको चतुर्दशीलाई अनन्त चतुर्दशी भनिन्छ। यस दिन भगवान् अनन्तको पूजा, आराधना र व्रत हुने गर्दछ। यस दिन अनन्तका रूपमा भगवान् हरिको पूजा गरिन्छ। रुवा, रेशमी धागो वा कुशले बनाएको चौधवटा गाँठो भएको अनन्तको निर्माण गरी पुरुषले दाहिने तथा नारियां बाँये हाथ में अनन्त धारण करती हैं रूई या रेशम के धागे कुंकमी रंग में रंगे होते हैं और उनमें चौदह गाँठे होती हैं। इन्हीं धागों से अनन्त का निर्माण होता है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक धार्मिक उत्सव नहीं होता। अग्नि पुराण[1] में इसका विवरण है। चतुर्दशी को दर्भ से बनी हरि की प्रतिमा की, जो कलश के जल में रखी होती है, पूजा होती है। व्रती को धान के एक प्रस्थ (प्रसर) आटे से रोटियाँ (पूड़ी) बनानी होती हैं जिनकी आधी वह ब्राह्मण को दे देता है और शेष अर्धांश स्वयं प्रयोग में लाता है।
 
यहयो व्रत नदी-तटतटमा पर कियागरे जाना चाहिए, जहाँ हरिहरिको कीकथाहरु कथाएँसुन्नुपर्छ। सुननीहरिबाट चाहिए।यस हरि से इस प्रकार की प्रार्थना कीप्रकारको जातीप्रार्थनाको हैजान्छ--'हे वासुदेव, इसयस अनन्त संसार रूपी महासमुद्रमहासमुद्रमा में डूबे हुएभए लोगों कीमानिसहरुको रक्षा करोगरो तथा उन्हेंतिनलाई अनन्तअनन्तका केरूपको रूप का ध्यान करनेगर्नमा में संलग्न करोगरो, अनन्त रूप वालेभएका तुम्हेंतिमीलाई नमस्कार।'[2] इसयस मन्त्र से हरिमन्त्रबाट कीहरिको पूजा करकेगरेर तथा अपने हाथआफ्नो केहाथका ऊपरीमाथिी भागभागमा में यावा गलेगलेमा में धागा बाँधकर यावा लटकाकरलटकाएर (जिस परजिसमा मन्त्र पढ़ा गयापढ़िएको हो) व्रती अनन्त व्रत करता हैगर्दछ तथा प्रसन्न होता है।हुन्छ। यदि हरि अनन्त हैंछन् तो 14 गाँठेंगाँठहरु हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों कीलोकहरुको द्योतक हैं।छन्।[3]मा में अनन्त व्रतव्रतको का विवरण विशद रूप सेरूपबाट आया है, उसमेंत्यसमा कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर सेयुधिष्ठिरबाट कही गयी कौण्डिन्य एवं उसकीत्यसको स्त्री शीला कीशीलाको गाथा भीपनि आयी है।छ। कृष्णकृष्णको का कथन है कि 'अनन्त' उनकेउनका रूपोंरूपहरुको का एक रूप है और वेती काल हैंछन् जिसेजसलाई अनन्त कहा जाता है।भनिन्छ। अनन्त व्रत चन्दन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारोंनैवेद्यका केउपचारहरुका साथ कियागरिन्छ। जातायस है। इस व्रत केव्रतका विषयविषयमा में अन्य बातों केबातहरुका लिए।[4] ऐसायस्तो आया है कि यदि यहयो व्रत 14 वर्षोंवर्षहरुसम्म तक कियागरे जाय तो व्रती विष्णुलोक कीविष्णुलोकको प्राप्ति कर सकतागर है।सक्दछ।[5]इस व्रत केव्रतका उपयुक्त एवं तिथितिथिका केविषयमा विषय में कईधेरै मत प्रकाशित हो गये हैं।छन्। माधव[6] केका अनुसार इसयस व्रत मेंव्रतमा मध्याह्न कर्मकालमध्याह्न नहींगर्मकाल हैछैन किन्तु वह तिथि, जो सूर्योदय केसूर्योदयका समय तीन मुहर्तों तकमुहर्तहरुसम्म अवस्थित रहती हैरह्दछ, अनन्त व्रत केव्रतका लिएलागि सर्वोत्तम है।छ। किन्तु नि0 सि0[7]ले नेयस इस मतमतको का खण्डन किया है।गरेकोछ। आजकल अनन्त चतुर्दशी व्रत किया जाता हैगरिन्छ, किन्तु व्रतियों कीव्रतिहरुको संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।छ।
इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनन्त की स्थापना की जाती है। इसके आगे कुंकुम, केसर या हल्दी से रंगकर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला 'अनन्त' भी रखा जाता है।
 
यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए, जहाँ हरि की कथाएँ सुननी चाहिए। हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है--'हे वासुदेव, इस अनन्त संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनन्त के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनन्त रूप वाले तुम्हें नमस्कार।'[2] इस मन्त्र से हरि की पूजा करके तथा अपने हाथ के ऊपरी भाग में या गले में धागा बाँधकर या लटकाकर (जिस पर मन्त्र पढ़ा गया हो) व्रती अनन्त व्रत करता है तथा प्रसन्न होता है। यदि हरि अनन्त हैं तो 14 गाँठें हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की द्योतक हैं।[3] में अनन्त व्रत का विवरण विशद रूप से आया है, उसमें कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गयी कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा भी आयी है। कृष्ण का कथन है कि 'अनन्त' उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं जिसे अनन्त कहा जाता है। अनन्त व्रत चन्दन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। इस व्रत के विषय में अन्य बातों के लिए।[4] ऐसा आया है कि यदि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाय तो व्रती विष्णुलोक की प्राप्ति कर सकता है।[5]इस व्रत के उपयुक्त एवं तिथि के विषय में कई मत प्रकाशित हो गये हैं। माधव[6] के अनुसार इस व्रत में मध्याह्न कर्मकाल नहीं है किन्तु वह तिथि, जो सूर्योदय के समय तीन मुहर्तों तक अवस्थित रहती है, अनन्त व्रत के लिए सर्वोत्तम है। किन्तु नि0 सि0[7] ने इस मत का खण्डन किया है। आजकल अनन्त चतुर्दशी व्रत किया जाता है, किन्तु व्रतियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
 
कथा
 
इसयस दिन भगवान विष्णु कीविष्णुको कथा होतीहुन्छ। है।यसमा इसमें उदय तिथि ली जातीजान्छ। है।पूर्णिमाको पूर्णिमा का सहयोग होनेहुनबाट सेयसको इसका बल बढ़ जाता है।जान्छ। यदि मध्याह्न तकमध्याह्नसम्म चतुर्दशी हो तोभनें ज़्यादाअधिक अच्छाराम्रो है।छ। जैसा इसयस व्रत केव्रतका नाम सेनामबाट लक्षित होता हैहुन्छ कि यहयो दिन उसत्यस अंत न होनेहुने वालेसृष्टिका सृष्टि के कर्तागर्ता निर्गुण ब्रह्मा कीब्रह्माको भक्तिभक्तिको का दिन है।छ। इसयस दिन भक्तगण लौकिक कार्यकलापोंकार्यकलापहरुबाट सेमनलाई मन को हटाकरहटाएर ईश्वर भक्तिभक्तिमा में अनुरक्त हो जातेजान्छन्। हैं। इसयस दिन वेद ग्रंथोंग्रंथहरुको का पाठ करकेगरेर भक्तिभक्तिको कीस्मृतिको स्मृति का डोरा बांधाबांधिन्छ। जातायस है। इस व्रत कीव्रतको पूजा दोपहरदोपहरमा में की जातीको है।जान्छ।
 
इसयस दिन व्रती कोव्रतीलाई चाहिए कि प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों सेनित्यकर्महरुबाट निवृत्त होकर कलशभएर कीकलशको स्थापना करें।गर्नुहोस्। कलश परकलशमा अष्टदल कमल केकमलका समान बने बर्तनबर्तनमा में कुश सेकुशबाट निर्मित अनन्त की स्थापना कीअनन्तको जातीस्थापनाको है।जान्छ। इसकेयसका आगेअघि कुंकुम, केसर यावा हल्दी सेहल्दीबाट रंगकर बनाया हुआबनाएको कच्चे डोरेडोरेको का चौदह गांठोंगांठहरु वाला 'अनन्त' भीपनि रखारखिन्छ। जाताकुशका है। कुश के अनन्त कीअनन्तको वंदना करकेगरेर, उसमेंत्यसमा भगवान विष्णुविष्णुको का आह्वान तथा ध्यान करकेगरेर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि सेआदिबाट पूजन करें।गर्नुहोस्। तत्पश्चात अनन्त देवदेवको का ध्यान करकेगरेर शुद्ध अनन्तअनन्तलाई को अपनीआफ्नो दाहिनी भुजा परभुजामा बांध लें।लहरु। यहयो डोरा भगवान विष्णु कोविष्णुलाई प्रसन्न करनेगरने वाला तथा अनन्त फल देने वाला मानामानिएको गयाछ। है। यहयो व्रत धन पुत्रादि की कामना से कियापुत्रादिको जाताकामनाबाट है।गरिन्छ।
इसयस दिन नएनयाँ डोरेडोरेका के अनन्त कोअनन्तलाई धारण करकेगरेर पुरानेपुरानोको का त्याग करगर देनादिनुपर्नेछ। चाहिए।यस इस व्रतव्रतको का पारण ब्राह्मण कोब्राह्मणलाई दान करकेगरेर करनागर्नु चाहिए। अनन्तपर्नेछ। कीअनन्तको चौदह गांठे चौदह लोकों कीलोकहरुको प्रतीत मानी गई हैं।छन्। उनमेंउनमा अनन्त भगवान विद्यमान हैं।छन्। भगवान सत्यनारायण केसत्यनारायणका समान हीनैं अनन्तदेव भीपनि भगवान विष्णुविष्णुको का हीनैं एक नाम है।छ। यही कारण है कि इसयस दिन सत्यनारायणसत्यनारायणको का व्रत और कथाकथाको का आयोजन प्राय: कियागरिन्छ। जाताजसमा है। जिसमेंसत्यनारायणको सत्यनारायण की कथा केकथाका साथ-साथ अनन्तदेव कीअनन्तदेवको कथा भीपनि सुनी जाती है।जान्छ।
 
एक बार महाराज युधिष्ठिर नेयुधिष्ठिरले राजसूय यज्ञ किया।गरे। उसत्यस समय यज्ञ मण्डपमण्डपको का निर्माण सुंदर तो थाथियो ही, अद्भुत भीपनि थाथियो वह यज्ञ मण्डप इतना मनोरम थाथियो कि जल अनि स्थल कीस्थलको भिन्नता प्रतीत हीनैं नहींछैनती होतीथियो। थी। जलजलमा में स्थल तथा स्थलस्थलमा में जल कीजलको भांति प्रतीत होती थी।थियो। बहुतधेरै सावधानी करनेगर्नमा परपनि भी बहुत सेधेरै व्यक्ति उसत्यस अद्भुत मण्डपमण्डपमा में धोखा खा चुके थे।थिए। एक बार कहीं सेकहींबाट टहलते-टहलते दुर्योधन भीपनि उसत्यस यज्ञ-मण्डपमण्डपमा में आए गया और एक तालाब कोतालाबलाई स्थल समझ उसमेंत्यसमा गिर गया। द्रौपदीद्रौपदीले नेयो यह देखकरदेखेर 'अंधों कीअंधहरुको संतान अंधी' कहकर उनका उपहास किया।गरे। इससेयसबाट दुर्योधन चिढ़ गया। यहयो बातकुरा उसकेत्यसको हृदयहृदयमा में बाण समान लगी। उसकेत्यसको मनमनमा में द्वेष उत्पन्न हो गया और उसनेत्यसले पाण्डवों सेपाण्डवहरुबाट बदला लेने की ठान ली। उसकेत्यसको मस्तिष्कमस्तिष्कमा में उसत्यस अपमानअपमानको का बदला लेनेलेनेका के लिएलागि विचार उपजने लगे।लागोस्। उसनेत्यसले बदला लेनेलेनेका केलागि लिए पाण्डवों कोपाण्डवहरुलाई द्यूत-क्रीड़ाक्रीड़ामा में हराकरहराएर उसत्यस अपमानअपमानको का बदला लेने की सोची। उसने पाण्डवोंत्यसले कोपाण्डवहरुलाई जुएजुएमा में पराजित करगर दिया।
पराजित होने परभएमा प्रतिज्ञानुसार पाण्डवों कोपाण्डवहरुलाई बारह वर्ष केवर्षका लिएलागि वनवास भोगना पड़ा वनवनमा में रहते हुएभए पाण्डव अनेक कष्ट सहते रहे। एक दिन भगवान कृष्ण जब मिलने आए तब युधिष्ठिर नेयुधिष्ठिरले उनसेउनीसित अपनाआफ्नो दुख कहा और दुख दूरटाड़ा करनेगर्ने का उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण नेश्रीकृष्णले कहा-'हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वकतिमीविधिपूर्वक अनन्त भगवानभगवानको का व्रत करोगरो, इससेयसबाट तुम्हारातिम्रो सारा संकट दूरटाड़ा होहुनेछ जाएगा और तुम्हारातिम्रो खोया राज्य पुन: प्राप्त होहुनेछ।' जाएगा।'यस इस संदर्भसंदर्भमा में श्रीकृष्ण एक कथा सुनातेसुनाँदै हुएभए बोले-
 
प्राचीन कालकालमा में सुमन्त नामनामको का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था।थियो। उसकीत्यसको पत्नीपत्नीको का नाम दीक्षा था।थियो। उसकेत्यसको एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी।थियो। जसको जिसका नाम सुशीला था।थियो। सुशीला जब बड़ी हुईभएको तो उसकीत्यसको माता दीक्षा कीदीक्षाको मृत्यु हो गई। पत्नीपत्नीका केमरनेका मरनेपछि केसुमन्तले बाद सुमन्त ने कर्कशागर्कशा नामक स्त्रीस्त्रीबाट से दूसराअर्को विवाह करगर लिया। सुशीलासुशीलाको का विवाह उसत्यस ब्राह्मण नेब्राह्मणले कौडिन्य ऋषि केऋषिका साथ करगर दिया। विदाईविदाईमा में कुछकेहि देने की बात पर कर्कशा ने दामादकुरामा कोगर्कशाले कुछदामादलाई ईंटेंकेहि औरईंटहरु पत्थरों केपत्थरहरुका टुकड़े बांधकर दे दिए। कौडिन्य ऋषि दुखी हो अपनीआफ्नो पत्नीपत्नीलोई कोलिएर लेकरआफ्नो अपने आश्रम कीआश्रमको ओर चल दिए। परन्तु रास्तेरास्तेमा में हीनैं रात हो गई। वेती नदी तट परतटमा सन्ध्या करनेगरने लगे। सुशीलालागोस्। नेसुशीलाले देखा-वहांवहांमा पर बहुतधेरै सी स्त्रियांस्त्रीहरु सुंदर वस्त्र धारण करगर किसीकुनै देवतादेवताको की पूजा परपूजामा रही थीं।थियों। सुशीलासुशीलाका केपूछनेमा पूछने पर उन्होंनेउनले विधिपूर्वक अनन्त व्रत कीव्रतको महत्ता बताई। सुशीला नेसुशीलाले वहीं उसत्यस व्रतव्रतको का अनुष्ठान कियागरे और चौदह गांठोंगांठहरु वाला डोरा हाथहाथमा में बांधकर ऋषि कौडिन्य केकौडिन्यका पास आ गई।
 
कौडिन्यकौडिन्यले नेसुशीलाबाट सुशीलाडोरेका सेबारेमा डोरे के बारे में पूछा तो उसनेत्यसले सारी बातकुरा बता दी। उन्होंने डोरेउनले कोडोरेलाई तोड़कर अग्निअग्निमा में डाल दिया इससेयसबाट भगवान अनन्त जीजीको का अपमान हुआ।हुने/भयो। परिणामत: ऋषि कौडिन्य दुखी रहने लगे।लागोस्। उनकीतिनको सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इसयस दरिद्रता कादरिद्रताको उन्होंने अपनीउनले पत्नीआफ्नो सेपत्नीबाट कारण पूछा तो सुशीला नेसुशीलाले अनन्त भगवानभगवानको का डोरा जलाने की बातकुरा कहीं। पश्चाताप करतेपश्चातापेरते हुएभए ऋषि कौडिन्य अनन्त डोरेडोरेको कीप्राप्तिका प्राप्तिलागि केवनमा लिए वन में चले गए। वनवनमा में कईधेरै दिनों तकदिनहरुसम्म भटकते-भटकते निराश होकरभएर एक दिन भूमि परभूमिमा गिर पड़े। तब अनन्त भगवान प्रकट होकरभएर बोले- 'हे कौडिन्य! तुमने मेरामेरो तिरस्कार कियागरेको थाथियो, उसीत्यसैबाट से तुम्हेंतिमीलाई इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुमतिमीदुखी दुखी हुए।भए। अब तुमने पश्चाताप कियागरेकोछ। है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घरतिमीघर जाकरजाएर विधिपूर्वक अनन्त व्रत करो।गरो। चौदह वर्ष पर्यन्त व्रत करनेगर्नको सेलागि तुम्हारातिम्रो दुख दूरटाड़ा हो जाएगा। तुमहुनेछ। धनतिमीधन-धान्य सेधान्यबाट सम्पन्न हो जाओगे। कौडिन्य नेकौडिन्यले वैसा हीनैं कियागरे और उन्हेंतिनलाई सारे क्लेशों सेक्लेशहरुबाट मुक्ति मिल गई।' श्रीकृष्णश्रीकृष्णको कीआज्ञाबाट आज्ञायुधिष्ठिरले से युधिष्ठिर ने भीपनि अनन्त भगवानभगवानको का व्रत कियागरे जिसकेजसका प्रभाव सेप्रभावबाट पाण्डव महाभारतमहाभारतका केयुद्धमा युद्ध में विजयी हुएभए तथा चिरकाल तकचिरकालसम्म राज्य करते रहे।गर्दैरहे।
संदर्भ ग्रंथ सूची