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धृतराष्ट्र के कथनानुसार, पांडवों ने हस्तिनापुरबाट प्रस्थान किया। आधे राज्य के आश्वासन के साथ उन्होंने खांडवप्रस्थ के वनों को हटा दिया। उसके उपरांत पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ मय दानव को सहायताबाट उस शहर का सौन्दर्यीकरण किया। वह शहर एक द्वितीय स्वर्ग के समान हो गया। उसके बाद सभि महारथियों व राज्यों के प्रतिनिधियों को उपस्थिति में वहां श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास के सान्निध्य में एक महान यज्ञ और गृहप्रवेश अनुष्ठान का आयोजन हुआ। उसके बाद, सागर जैसी चौड़ी खाईबाट घिरा, स्वर्ग गगनचुम्बी चहारदीवारीबाट घिरा व चंद्रमा या सूखे मेघों जैसा श्वेत वह नगर नागों को राजधानी, [[भोगवती नगर]] जैसा लगने लगा। इसमें अनगिनत प्रासाद, असंख्य द्वार थे, जो प्रत्येक द्वार गरुड़ के विशाल फ़ैले पंखों को तरह खुले थे। इस शहर को रक्षा दीवार में [[मंदराचल]] पर्वत जस्ता विशाल द्वार थे। इस शस्त्रहरुबाट सुसज्जित, सुरक्षित नगरी को दुश्मनों का एक बाण भी खरौंच तक नहीं सकता था। त्यसको दीवारों पर तोपें और शतघ्नियां रखीं थीं, जस्तो दुमुंही सांप होते हैं। बुर्जियों पर सशस्त्र सेना के सैनिक लगे थे। उन दीवारों पर वृहत लौह चक्र भी लगे थे।
 
यहाँको सडअकें चौड़ी और साफ थीं। उन पर दुर्घटना का कोई भय नहीं था। भव्य महलों, अट्टालिकाओं और प्रासादहरुबाट सुसज्जित यह नगरी इंद्र को अमरावतीसंग मुकाबला करती थीं। यस कारण नै यस इंद्रप्रस्थ नाम दिया गया था। इस शहर के सर्वश्रेष्ठ भाग में पांडवों का महल स्थित था। इसमें [[कुबेर]] के समान खजाना और भंडार थे। इतने वैभवबाट परिपूर्ण इसको देखकर दामिनी के समान आंखें चौधिया जाती थीं।
सुसज्जित यह नगरी इंद्र को अमरावतीसंग मुकाबला करती थीं। यस कारण नै यस इंद्रप्रस्थ नाम दिया गया था। इस शहर के सर्वश्रेष्ठ भाग में पांडवों का महल स्थित था। इसमें [[कुबेर]] के समान खजाना और भंडार थे। इतने वैभवबाट परिपूर्ण इसको देखकर दामिनी के समान आंखें चौधिया जाती थीं।
 
“जब शहर बसा, तो वहां बड़ी संख्या में ब्राह्मण आए, जिनके पास सभी वेद-शास्त्र इत्यादि थे, व सभी भाशाओं में पारंगत थे। यहां सभी दिशाहरुबाट धेरै व्यापारीगण पधारे। उन्हें यहां व्यापार कर द्न संपत्ति पाउने आशाएं थीं। धेरै कारीगर वर्ग के लोग भी यहां आ कर बस गए। इस शहर को घेरे हुए, कई सुंदर उद्यान थे, जिनमें असंख्य प्रजातियों के फल और फूल इत्यादि लगे थे। इनमें [[आम्र]], अमरतक, कदंब अशोक, चंपक, पुन्नग, नाग, लकुचा, पनास, सालस और तालस के वृक्ष थे। तमाल, वकुल और केतकी के महकते पेड़ थे। सुंदर और पुष्पित अमलक, जसको शाखाएं फलहरुबाट लदी होने के कारण झुकी रहन्थ्यो। लोध्र और सुंदर अंकोल वृक्ष भी थे। जम्बू, पाटल, कुंजक, अतिमुक्ता, करविरस, पारिजात और ढ़ेरों अन्य प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे। अनेकों हरे भरे कुञ्ज यहां मयूर और कोकिल ध्वनिहरुबाट गुंजते रहते थे। कई विलासगृह थे, जो कि शीशे जस्ता चमकदार थे, और लताहरुबाट ढंके थे। यहां कई कृत्रिम टीले थे, और जलबाट ऊपर तक भरे सरोवर और झीलें, कमल तड़ाग जिनमें हंस और बत्तखें, चक्रवाक इत्यादि किल्लोल करते रहते थे। यहां कई सरोवरों में धेरै जलीय बिरुवाहरु पनि भी भरमार थी। यहां रहकर, शहर को भोगकर, पाण्डवको खुशी दिनोंदिन बढ़ती गई थी।
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