"द वेल्थ अफ नेसन्स" का संशोधनहरू बिचको अन्तर

पङ्क्ति ९:
''द वेल्थ अफ नेसन्स'' ९ मार्च १७७६ मा प्रकाशित भयो।,<ref>{{Cite book |contribution-url=https://books.google.com/books?id=SwFYIf_E1CIC&pg=PA31 |title=An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations: A Selected Edition |last=Smith |first=Adam |date=2008 |orig-year=1776 |publisher=Oxford University Press |isbn=978-0191504280 |page=31 |contributor-first=Kathryn |contributor-last=Sutherland |contribution=Note on the Text |df=dmy-all}}</ref> जुन स्कटिस इनलाइट्मेन्ट र स्कटिस कृषि क्रान्ति को सम्य थियो।<ref>See {{Cite book |last=Smith |first=Adam |year=1776 |editor-last= |editor-first= |contribution= |title=An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations |volume=1 |edition=1 |publisher=W. Strahan |publication-date=1776 |location=London |pages= |url=https://books.google.com/books?id=C5dNAAAAcAAJ&pg=PP7#v=onepage&q&f=true |accessdate=2012-12-07}}, [https://books.google.com/books?id=mt1SAAAAcAAJ&pg=PP4#v=twopage&q&f=true volume 2] via Google Books</ref>
==सार ==
=== प्रथम खण्ड: श्रम की उत्पादक शक्तियों में सुधार के कारण ===
'''श्रम विभाजन''': लोग दिन भर मेहनत तो हर देश में करते हैं। तो फिर एक देश में दैनिक श्रम से अधिक सम्पन्नता और दूसरे में कम क्यों होती है? देखा जाता है कि जहाँ उद्योग और आर्थिक सुधार अधिक है, वहाँ [[श्रम का विभाजन]] भी अधिक है और इसी से इन देशों में सर्वव्यापी समृद्धि उत्पन्न होती है। प्राकृतिक रूप से [[कृषि]] में श्रम विभाजन कम और [[विनिर्माण]] (मैन्युफैकचरिंग) में अधिक होता है, इसलिए कृषि क्षेत्र में गरीब और अमीर देशों में अंतर इतना नहीं होता लेकिन अमीर देश विनिर्माण में गरीब देशों से काफी आगे होते हैं। विनिर्माण-केन्द्रित होने से ही अमीरी आती है, कृषि-केन्द्रित होने से कभी नहीं।
 
'''श्रम विभाजन बाज़ार के आकार से सीमित होता है''': जहाँ व्यापार करने का बाज़ार छोटा हो, वहाँ श्रम विभजन भी सीमित होता है। खुले व्यापार द्वारा व्यापारिक क्षेत्र बढ़ाने से श्रम विभाजन और राष्ट्रीय धन में वृद्धि होती है। यही कारण है कि इतिहास में [[बंदरगाह]] वाले क्षेत्र अधिक अमीर हुआ करते थे क्योंकि उनकी व्यापारिक पहुँच अन्य क्षेत्रों से अधिक थी।
 
'''[[मुद्रा (विनिमय माध्यम)|पैसे]] की उत्पत्ति और प्रयोग''': कोई अकेले श्रम भला कितना ही कर ले, उसकी सभी आवश्यकाएँ उस से कभी पूरी नहीं होंगी। इसी से [[वस्तु विनिमय]] (बार्टर, यानि वस्तुओं का व्यापारिक लेनदेन) आरम्भ हुआ था। इसके विस्तार के लिए पैसे का आविष्कार हुआ। मुद्रा [[धातु]] के टुकड़ों (सिक्कों) की बनने लगी।
 
'''श्रमिकों की आय''': श्रमिक आपस में नौकरियों के लिए स्पर्धा करते हैं और उन्हें नौकरी देने वाले मालिक आपस में अच्छे श्रमिकों को अपने काम में लगाने के लिए स्पर्धा करते हैं। इसी से आय उत्पन्न होती है। (देखिए: [[आर्थिक संतुलन]])। जब श्रमिक अधिक हों तो आय गिरती है और जब नौकरियाँ अधिक हों तो आय बढ़ती है। सरकार हस्तक्षेप द्वारा किसी आर्थिक क्षेत्र को दी गई [[सहायिकी]] (सब्सीडी) अक्सर बुर असर लाती है क्योंकि इस से आवश्यकता से अधिक लोग उस आर्थिक क्षेत्र में काम करने लगते हैं। इस से आगे चलकर उनकी आय घटती है।
 
==प्रभाव ==